नई दिल्ली (ईएमएस)। अब तक हम इतिहास में आर्यो के भारत में बाहर से आने के दावे पढ़ते रहे हैं। लेकिन, एक अध्ययन ने इस दावे को खारिज कर दिया है। हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई में मिले नरकंकालों के अवशेषों पर अध्ययन से यह खुलासा हुआ है। अध्ययन में कहा गया कि आर्य बाहर से नहीं आए थे।
अध्ययन के जरिए रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम के प्रमुख डेक्कन कॉलेज पुणे के प्रो. वसंत शिंदे ने बताया कि इतिहास के दावे निराधार हैं। आर्य के हमले और उनके बाहर से भारत में आने के दावे बेबुनियाद हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि आर्य शिकार, खेती, पशुपालन और संग्रह करने की सभी चीजें उन्होंने खुद ही किए हैं। हरियाणा के राखीगढ़ी से मिले एक नरकंकाल के अध्ययन के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है।
3 वर्ष का लगा समय
प्रो.शिंदे ने बताया कि टीम ने इस पर अध्ययन करने में तीन वर्ष का समय लिया। इसके लिए टीम में भारत के पुरातत्वविद और हारवर्ड मेडिकल स्कूल के डीएनए एक्सपर्ट शामिल रहे। इस टीम में प्रो. शिंदे के अलावा वागीश नरसिम्हन, नीरज राय और हॉर्वर्ड के डेविड रिच शामिल थे।
सेल अंडर द टाइटल नाम से रिपोर्ट पब्लिश
हरियाणा के राखीगढ़ी में खुदाई में मिले नरकंकालों के अवशेषों पर अध्ययन से यह खुलासा हुआ है।
टीम ने साइंटिफिक जरनल सेल अंडर द टाइटल नाम से रिपोर्ट पब्लिश की है। राखीगढ़ी का हिस्सा हिसार के पास सिंधु घाटी के किनारे 300 एकड़ में फैला हुआ है। यह हड़प्पा संस्कृति के ईसा पूर्व 2800 से 2300 के बीच के समय को दर्शाता है। हड़प्पा सभ्यता के बाद आर्यन बाहर से आए होते तो अपनी संस्कृति साथ लाते।
रिपोर्ट में तीन अहम बिंदु
– प्राप्त कंकाल उन लोगों से ताल्लुक रखता था, जो दक्षिण एशियाई लोगों का हिस्सा थे।
– 12 हजार साल से एशिया का एक ही जीन रहा है। भारत में विदेशियों के आने की वजह से जीन में मिक्सिंग होती रही।
– भारत में खेती करने और पशुपालन करने वाले लोग बाहर से नहीं आए थे।