नई दिल्ली (ईएमएस)। अगर आप पैकेज्ड फूड और एडड शुगर का सेवन कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए। क्योंकि यह आरके स्वास्थ्य को नुकसान तो पहुंचाता हैं साथ इससे बांझपन जैसी समस्या भी आ सकती है। पिछले कुछ वर्षों से इनफर्टिलिटी के मामलों में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसके पीछे कई अंदरूनी कारक होने के अलावा हमारी आधुनिक जीवनशैली भी बराबर की जिम्मेदार है। हमारी मौजूदा डाइट में हम ऐसे बहुत से अस्वस्थकर भोजन, पैकेज्ड फूड और एडड शुगर का सेवन कर रहे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ये फूड न केवल महिलाओं के बल्कि पुरुषों की प्रजनन प्रणाली को भी प्रभावित कर रहे हैं। हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, डाइट में शुगर की अत्याधिक मात्रा आपकी स्पर्म गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकती है।
मौजूदा डाइट में हम ऐसे बहुत से अस्वस्थकर भोजन, पैकेज्ड फूड और एडड शुगर का सेवन कर रहे हैं, जो हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
अध्ययन में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि एक विशेष प्रकार की डाइट किसी की भी स्पर्म क्वालिटी को प्रभावित कर सकती है। इतना ही नहीं निरंतर शुगर की मात्रा ज्यादा लेने से आपकी स्पर्म क्वालिटी बहुत तेजी से प्रभावित करती है। अध्ययन के शोधकर्ताओं के मुताबिक, स्पर्म की क्वालिटी कई पर्यावरण और जीवनशैली कारकों द्वारा क्षतिग्रस्त होती है, जिसमें मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज जैसी अन्य बीमारियां शामिल हैं। ये सभी कारक खराब स्पर्म क्वालिटी की ओर ले जाती हैं। स्वीडन की लिंकोपिंग यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर का कहना है, ‘हम देखते हैं कि डाइट स्पर्म की गतिशीलता को प्रभावित करती है और हम उनमें विशिष्ट मॉलिक्यूल के परिवर्तनों को जोड़ सकते हैं।

हमारे अध्ययन में तेजी से उन प्रभावों का पता चला है, जो एक से दो सप्ताह के बाद ध्यान देने योग्य होते हैं।’ शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन इस बात का पता लगाने के लिए किया था कि क्या शुगर की अत्याधिक मात्रा इंसानी स्पर्म में आरएनए फ्रैगमेंट को प्रभावित कर सकती है या नहीं। शोधकर्ताओं ने 15 सामान्य पुरुष को अध्ययन के लिए चुना, जो न तो धूम्रपान करने वाले थे और उन्हें पहले हफ्ते एक ऐसी डाइट दी गई, जिसमें सिर्फ हेल्दी फूड था। जबकि दूसरे हफ्ते में उन्हें हाई शुगर वाली डाइट दी गई। एक जर्नल प्रकाशित निष्कर्षों से सामने आया कि स्पर्म गतिशीलता बहुत कम समय में बदल सकती है और यह हमारी डाइट से काफी करीबी रूप से जुड़ी हुई है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण क्लीनिकल पहलू है।’