नई दिल्ली (ईएमएस)। मरुस्थलीकरण की वैश्विक समस्या से निपटने के लिए ग्रेटर नोएडा में चल रहे कॉप 14 सम्मेलन में एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। भूक्षरण के फलस्वरूप बंजर और मरुभूमि में जमीन के तब्दील होने के कारण मिट्टी में कार्बन की मात्रा कम होने से ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन में बढ़ोतरी, जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारक बन रहा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी समूह (आईपीसीसी) द्वारा जारी इस रिपोर्ट पर चर्चा के दौरान विशेषज्ञों का कहना है कि कुल वैश्विक उत्सर्जन में कृषि, वन एवं भूउपयोग की हिस्सेदारी एक तिहाई है।
मरुस्थलीकरण की वैश्विक समस्या से निपटने के लिए ग्रेटर नोएडा में चल रहे कॉप 14 सम्मेलन में एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।
रिपोर्ट के लेखक समूह की सदस्य मिनाल पाठक ने कहा कि वनों की कटाई के कारण ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है। भूक्षरण के कारण मिट्टी में कार्बन तत्वों के घनत्व में कमी आने के बाद उसी जमीन पर पनपने वाले वन पुराने स्तर की भरपाई नहीं कर पाते हैं। वन प्रबंधन से वनभूमि पर कार्बन के भंडार को कम किया जाता है, उससे भी उत्सर्जन बढ़ता है। रिपोर्ट के अनुसार कृषि भूमि की मिट्टी खेती के इस्तेमाल में लाए जाने से पहले 20 से 60 प्रतिशत जैविक कार्बन को खो देती है। पारंपरिक कृषि के उपयोग वाली मिट्टी लगातार होने वाले ग्रीनहाऊस उत्सर्जन का स्रोत बनी रहती है। मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के सदस्य देशों ने 2030 तक भूक्षरण के प्रभाव को नगण्य बनाने का लक्ष्य तय किया है। इससे जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना किया जा सके।