न्यूर्याक (ईएमएस)। आपको जानकर हैरानी होगी कि सेक्स वर्धक वायग्रा की गोली का इस्तेमाल ल्यूकीमिया यानी ब्लड कैंसर और कई दूसरे तरह के कैंसर के मरीजों के इलाज में भी किया जाएगा। दरअसल, वायग्रा को जब विकसित किया गया था उस वक्त ओरिजनली इस दवा का मकसद इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या का इलाज करना नहीं था। इसकी जगह सिल्डेनाफिल को इसलिए तैयार किया गया था ताकि वह पल्मोनरी आरट्रियल हाइपरटेंशन के लक्षणों का इलाज कर सके। यह एक तरह की हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी है जो हार्ट और लंग्स के बीच होती है। विस्तार से समझने की कोशिश करें तो पल्मोनरी आरट्रियल हाइपरटेंशन एक ऐसी स्थिति है जिसमें लंग्स में हाइपरटेंशन की स्थिति बन जाती है और तब हृदय को खून को फेफड़ो तक पहुंचाने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। ऐसी स्थिति में सिल्डेनाफिल या वायग्रा दवा, फेफड़ों में फोस्फोडिस्ट्रेस5 इंजाइम पर काम करती है और ब्लड वेसल्स यानी रक्त धमनियों को चौड़ा करने और लंग्स को रिलैक्स करने में मदद करती है।
वायग्रा को जब विकसित किया गया था उस वक्त ओरिजनली इस दवा का मकसद इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या का इलाज करना नहीं था।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया, सैंटा क्रूज की एक रिसर्च टीम के पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या सुलझाने में मदद करने वाली दवा वायग्रा, ब्लड स्ट्रीम के बोन मैरो में स्टेम सेल्स को रिलीज करने में मदद करती है जिससे कलेक्शन आसान हो जाता है। स्टेम सेल रिपोर्ट नाम के जर्नल में प्रकाशित इस स्टडी में बताया गया है कि सैनोफी के स्टेम सेल मोबिलाइजर मोजोबिल को वायग्रा के साथ पेयर करके दिया जाए तो यह बेहतर काम करता है। हालांकि अभी तक यह रिसर्च सिर्फ चूहों पर हुई है। लेकिन इसे जल्द ही इंसानों पर भी किए जाने की बात कही जा रही है। चूहों पर वायग्रा के इफेक्ट्स पर स्टडी कर रहे अनुसंधानकर्ताओं ने खोज की है कि अगर चूहों के पीने के पानी में वायग्रा की छोटी सी डोज को रोजाना शामिल किया जाए तो उनमें कोलोरेक्टल कैंसर होने के खतरे को कई गुना कम किया जा सकता है। हालांकि अब तक यह रिसर्च सिर्फ जानवरों पर हुई है लेकिन जल्द ही मरीजों पर भी इसका क्लिनिकल ट्रायल किया जाएगा। बता दें कि नीली रंग की गोली जिसे वायग्रा या ब्लू पिल के नाम से भी जाना जाता है का इस्तेमाल पुरुषों में होने वाली समस्या इरेक्टाइल डिस्फंक्शन को ठीक करने में किया जाता है।